गुरुवार, 26 मई 2011

महाजन: समृद्ध अतीत की बिसरती गाथाएं

-मदन गोपाल लढ़ा-

कौन कहता है पत्थरों के जबान नहीं होती ? जरूरत होती है दो अन्वेषी आंखों की। महाजन के हृदय स्थल पर स्थित किला भी अपने समृद्ध अतीत की कहानी कहता प्रतीत होता है। मुख्य बाजार में गढ़ का प्रवेश द्वार ’गंगा प्रोल‘ अपनी विरासत की यादों को समेटे अविचल खड़ा है। प्राचीन समय में यह किला प्रासादों एवे भवनों से भरा पूरा था, परन्तु समय के साथ टूट - फुट गया। नए परिवेश में अतीत की गाथाओं पर इतिहास का अंधेरा छा गया है।
महाजन मरूदेश बीकानेर जिले का प्राचीन एवं ऐतिहासिक कस्बा है। प्राचीन शिलालेखों एवं साहित्यिक ग्रंथों में इसके साहोर ,मालागढ़ नामों का उल्लेख मिलता है। स्थापना की दृष्टि से चिन्तन करें तो महाजन बीकानेर से भी अधिक प्राचीन है। ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार श्री रत्न सिंह जी ने महाजन राज्य की स्थापना की। रत्नसिंह बीकानेर के संस्थापक बीकाजी के पौत्र व राव राजा लुनकरन जी के पुत्र थे। कन्हैयालाल राठौड़ दुलहारामात्जा के ‘महाजनेश चरित’ के अनुसार विक्रमाब्द 1583में राव लूनकरन का नारनौल में नवाब के साथ युद्ध हुआ। इस युद्ध में लूनकरन अपने तीन पूत्रों सहित अद्भुत वीरता दिखाते हुए शहीद हुए। यह दुखद समाचार बीकानेर पहुंचा। राज परम्परा से हरिसिंह उतराधिकारी थे तथा इस समय दिल्ली में थे। किन्ही अपरिहार्य कारणों से वे बारह दिनों तक बीकानेर नहीं पहुंच पाए। इस पर राजमाता ने गद्दी की रिक्तता को दृष्टिगत करते हुए उनके आने तक जैत्रसिंह को राजा बना दिया। बाद में जब रत्नसिह बीकानेर पहुंचे तो राजमाता देवड़ी जी व जैत्रसिंह ने उनसे शासन संभालने का आग्रह किया, परन्तु रत्नसिंह ने यह कहकर बात टाल दी कि जैत्रसिंह माता की आज्ञा से राजा हुए है एवं माता की आज्ञा को वे विछिन्न नहीं करेंगे। बहुत आग्रह करने के बावजूद भी रत्नसिंह अपने भीष्म निश्चय पर अडिग रहे। तत्पश्चात माता की आज्ञा से 144 गांवों की जागीर को महाजन राज्य के नाम से स्थापित किया एवं महाजन (साहोर) को इसकी राजधानी बनाया। तदनुसार महाजन को बीकानेर का अधिराजिया होने का गौरव मिला। रत्नसिंह के उतराधिकारी अर्जुन सिंह थे। वे बहुत ही वीर योद्धा व बलवान थे। उनकी बलिष्टता के चर्चे आज भी महाजन के लोगों की जुबान पर है।
इस वंश में ठा. अमरसिंह हुए। वे ज्योतिष, आयुर्वेद और तंत्रशास्त्र के प्रकाण्ड विद्वान थे। 14वीं पीढ़ी में ठा. रामसिंह हुए। वे वेदान्त व व्याकरण के ज्ञाता थे। उनके समय में महाजन को ‘छोटी काशी’ कहा जाता था। इसी परम्परा को आगे बढ़ाया राव राजा हरिसिंह ने। वे बीकानेर के यशस्वी राजा गंगासिंह के सहपाठी थे। वे संगीत व कला प्रेमी थे। उनके समय में साहित्य, दर्शन व व्याकरण के ज्ञाता पं. केसरी प्रसाद शास्त्री हुए। इसी समय संस्कृत व ज्योतिष के मर्मज्ञ मनीषी पं. मूलचंद वैष्णव हुए।
वैदिक संस्कृत के साथ महाजन प्राचीन समय में जैन संस्कृति का भी प्रमुख केन्द्र रहा था। यहां एक प्राचीन जैन मंदिर आज भी अवस्थित है। इसमें स्थिर तीर्थकर श्री विमलनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख के अनुसार इसकी स्थापना विक्रमाब्द 1498 में पद्मघोषगच्छ के प्रमुख आचार्य पद्मशेखर सूरी के शिष्य श्री विजय चंद्र सूरी द्वारा हुई। एक अन्य प्रतिमा सुमतिनाथ की है जिस पर विक्रमाब्द 1523 में पद्मानन्द सूरी द्वारा स्थापना का उल्लेख मिलता है।
महाजन में धार्मिक स्थल के रूप में श्री लक्ष्मीनारायण जी का ऐतिहासिक मंदिर है जो अब जर्जर स्थिति में पहुंच चुका है जिसकी स्थापना वि.स. 1540 के आसपास हुई थी। महाजन के परम धार्मिक शासक श्री रामसिंह द्वारा निर्मित रामेश्वर महादेव मंदिर तथा तख्त सागर सरोवर आज भी जन आस्था के केन्द्र है।
समय के साथ अतीत की ये गौरव गाथाएं बिसरती जा रही है। जरूरी है तो इस समृद्ध अतीत के अनुरूप ही उज्ज्वल भविष्य के सृजन की, जिसका बीड़ा महाजन के जनों को ही उठाना है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें