बुधवार, 16 नवंबर 2011

हवा में तैरता है देशभक्ति का जज्बा



हवा में तैरता है देशभक्ति का जज्बा

चारों तरफ पसरे रेत के धोरे। अकाल दर अकाल के बावजूद जीवट के धनी लोगों का संघर्ष। कला, साहित्य,संगीत की त्रिवेणी। धर्म, समाज सेवा व जीवन के अन्य क्षेत्रों में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाते लोग। समृद्ध इतिहास की  अमर गाथाएं जो आज भी लोगों की जुबान पर है। बीकानेर जिले ·के ग्राम्यांचल महाजन क्षेत्र  में जिन्दगी की रौनक  कुछ ऐसे ही दिखती है।
लूणकरनसर तहसील के इतिहास के पन्नों में देशभक्ति की प्रेरक कथाएं दर्ज हैं। यहां की धोरों की धरती की मिट्टी में देशप्रेम की भावना रची-बसी है। गुलामी के विरूद्ध जब देश के अन्य भागों से आवाज बुलन्द हुई तो इस मरूकांतार क्षेत्र के लोगों के मन में भी देशभक्ति का जज्बा उछाल मारने लगा। राजा राममोहन राय, स्वामी दयानन्द सरस्वती व स्वामी विवेकानन्द की पावन वाणी ने जब धर्म व समाज में सुधार की जोत जलाई तो इस क्षेत्र के लोग भी सामाजिक  बुराईयों व धार्मिक अंधविश्वासों के खिलाफ उठ खड़े हुए। स्वतंत्रता के पहले संग्राम के बाद मंगल पांडे जैसे नौजवानों की भावना देश भर में फैली तो राजस्थान की वीर प्रसूता भूमि में भी गुलामी की बेडिय़ों के खिलाफ जन आक्रोश फैल गया। बीसवीं सदी ·की शुरूआत में स्वामी केशवानन्द ने उठ चकले फिरंगिया डेरा, राज नहीं रहना अब तेरा की घोषणा करके गौरी सरकार को आने वाले तूफान ·का संकेत  दे दिया। देश की अन्य रियासतों की तरह इस अंचल में भी लोग अपने अधिकारों की बात ·रने लगे।
लूण·रनसर क्षेत्र के रणबांकुरों ने अनेक बार अपने बुलन्द हौसलों से इस अंचल को गौरवान्वित किया है। लाहौर के महाराजा और ब्रिटिश हुकुमत के बीच १८४६ में हुए सुलहनामें में केलां के सैनिक  मूलसिंह व खारबांरा के भोपालसिंह व महाजन के सरदारों को उनकी वीरता के लिए अंग्रेज सरकार ने खिलअते भेजी। प्रथम विश्व युद्ध में कालू क्षेत्र से गए सैनिकों ने अपनी वीरता से सबको प्रभावित किया। मणेरां गांव में सन्न १९२७ में जन्में मेजर पूर्णसिंह ने १९६५ में पाकिस्तान के  खिलाफ युद्ध में अपनी वीरता पूर्ण शहादत से मातृभूमि ·को गौरवान्वित किया। गारबदेसर के लेफ्टिनेट कर्नल जगमालसिंह ने भारत-पाक  युद्ध में अपने हाथ दिखाए। यहीं के लक्ष्मणसिंह ने भी देश के लिए पाक के खिलाफ १९६५ व १९७१ के युद्धों में भाग लिया। बिग्गा बास, रामसरा के अमर शहीद ·कैप्टन चन्द्र चौधरी का भी इस अंचल से निकट का  सम्पर्क रहा है। आज भी तहसील क्षेत्र के चार दर्जन से अधिक  युवा फौज में देश की एकता, अखण्डता की रक्षा करने में अहर्निश जुटे हुए है। इस अंचल ·के चौतीस गांवों ने देश के लिए अपनी ·कुरबानी दी है जहां सन् १९८४ में महाजन फील्ड फायरिंग रैंज की स्थापना की गई। सामरिक  दृष्टि से महत्वपूर्ण महाजन फील्ड फायरिंग रैंज में अभ्यास हेतु सेना की आवाजाही निरन्तर बनी रहती है। देश भर के सैनिक  यहां आकर तोपाभ्यास के गुर सीखते हैं। अंचल के गांव-गुवाड़ में देशभक्ति ·का  जज्बा तैरता है। यहां के लोग देश की रक्षा में जुटे जवानों ·का हर सम्भव सहयोग करके उनकी हौसला अफजाही तो करते ही है परिवार के सदस्यों की भांति उनकी आवभगत से जवानों ·का मन मोह लेते है। इन्हीं संस्कारों के बलबूते पर इस अंचल में देशभक्ति का बिरवा फल-फूल रहा है।

डॉ. मदन गोपाल लढ़ा      

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